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वैदिक ध्यान केन्द्र


प्रत्येक मानव आज सुख पाने के लिये सभी प्रकार की भौतिक और सांसारिक सुविधायें एकत्र करने में जुटा है। ये सब प्राप्त करने पर भी वह पहले की अपेक्षा अधिक अशान्त, असन्तुष्ट, तनावग्रस्त और चिन्तित है। जितने अधिक साधन उतनी अधिक उलझन में फंसता जाता है और वास्तविक सुख से दूर होता जाता है।
ये सब तनाव और चिन्ताएँ बढ़ती ही जा रही है। इन सबसे बचने का एकमात्र उपाय हमारे प्राचीन मनीषियों ने बताया-अध्यात्म और इसमें विशेष रूप से ध्यान (मैडिटेशन)। आधुनिक मनोवैज्ञानिकों एवं मनोचिकित्सकों का भी यही मानना है कि तनाव, अवसाद, निराशा, अशान्ति आदि मानसिक मनाविकारों से बचने के लिए कोई सफल उपाय है तो वह है-ध्यान जो बहुत ही महत्त्वपूर्ण है। यही कारण है कि आज युवापीढ़ी भी मैडिटेशन सीखने के लिए लालययित रहती है। अनेक प्रकार की ध्यान पद्धतियाँ प्रचलित हैं। आपको यह जानकर प्रसन्नता होगी कि हमारा यह केन्द्र अष्टांगयोग यानि राजयोग के माध्यम से ध्यान का प्रशिक्षण देने के लिए कटिबद्ध है। स्व. ब्रह्मचारी आचार्य राजसिंह के अथक परिश्रम द्वारा स्थापित ‘श्री सत्य सनातन वेद मन्दिर समिति’ दिल्ली के रोहिणी क्षेत्र में निर्माणधीन इस ध्यान केन्द्र में यह प्रशिक्षण आर्य जगत् के जाने-माने प्रतिष्ठित व नि:स्पृह संन्यासी, दर्शनाचार्य एवं व्याकरणाचार्य स्वामी विष्व जी परिव्राजक के निर्देशन में दिया जाएगा। समय-समय पर अल्पकालिक एवं दीर्घकालिक आवासीय शिविरों के आयोजन कर यह प्रशिक्षण देने की योजना है। विभिन्न आयुवर्ग एवं भिन्न-भिन्न स्तरों के लोग यह प्रशिक्षण प्राप्त कर सकेंगे। इस प्रकल्प के अन्तर्गत ध्यान से सम्बन्धित एवं ध्यान में सहायक अष्टांग-योग तथा षड्दर्शनों का सैद्धान्तिक अध्ययन-अध्यापन और व्यावहारिक प्रशिक्षण भी सम्मिलित रहेगा।
इसके अतिरिक्त, समय की माँग व आवश्यकता के अनुरूप यहाँ मानव-निर्माण का प्रशिक्षण प्रदान किया जाएगा। आज मनुष्यों के लिए अनेक प्रकार के शिक्षा-संस्थानों, यूनिवर्सिटीज़ में डॉक्टर, इंजीनियर, आर्किटेक्ट, सी.ए. आदि के निर्माण के लिए तो कार्य हो रहा है परन्तु सर्वाधिक महत्त्वपूर्ण मानव के निर्माण के लिए बहुत कम संस्थान हैं। आज संसार को इस प्रकार के संस्थानों की आवश्यकता है। वास्तव में मानव-निर्माण की फैक्ट्री तो गृहस्थ आश्रम है। आज विवाहोपरान्त गृहस्थ दम्पती न तो स्वेच्छानुसार आदर्श बालक को जन्म देना जानते हैं और न ही उसका निर्माण करना। अतः ‘मानव-निर्माण की ऋषियों द्वारा विहित वास्तविक वैज्ञानिक विधि क्या है’ यह जानना अत्यावश्यक है, जिससे भावी पीढ़ी परिवार, समाज, राष्ट्र और स्वयं के लिए सचमुच उपयोगी सिद्ध हो सके। इसके लिए विवाहपूर्व ही युवा पीढ़ी को निर्धारित पाठ्यक्रम के अनुसार प्रशिक्षण देने की योजना भी है।