कालत्रयसत्तावन्नित्यम् ॥१॥ जो सदा से है और सदा रहेगा, अर्थात् जो सब कालों में विद्यमान है वह नित्य कहाता है। जो आज हैं, कल नहीं-ऐसे ‘श्वोभावाः’ पदार्थ नित्य नहीं कहाते। जिसका आदि है उसका अन्त अवश्यम्भावी है, अतः जो अनादि है वही अनन्त होगा। जो काल की गति में आकार नाम-रूप आदि के परिवर्तन से […]
अध्यक्ष - रोजड़
उपाध्यक्ष - दिल्ली
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